बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 57)

गाँव के बाजदार डोम और परजा बिल्लेसुर को आ-आकर घेरने लगे।


 खुशामद की चार बातें सुनाते हुए कि घर की सूरत बदली, चिराग़ रौशन हुआ, साल भर में बाप-दादे का नाम भी जग जायगा, पहले सूने दरवाज़े से साँस लेकर निकल जाते थे, अब अड़े रहेंगे, कुछ लेकर टलंगे।

 बिल्लेसुर को ऐसी गुदगुदी होती थी कि झुर्रियों में मुस्करा देते थे। सोचते थे, परजे नाक के बाल बन गये।

 पतले हाल की परवा न कर चढ़कर ब्याह करने की ठानी; लोग-हँसाई से डरे। परजे ऐसा मौक़ा छोड़कर कहाँ जायँगे, सोचा, इन्हें कुछ लिया-दिया न गया तो रास्ता चलना दूभर कर देंगे, बाप-दादों से बँधी मेड़ कट जायगी। 

भरोसा हुआ कि ब्याह का ख़र्च निबाह लेंगे।

नाई रोज़ तेल लगाने और बाल बनाने को पूछने लगा। 

कहार एक रोज़ अपने आप आकर दो घड़े पानी भर गया। 

बेहना बत्ती बनाने के लिये रुई की चार पिंडियाँ दे गया। 

चमार पाकर पूछ गया, ब्याह के जोड़े नरी बनाये या मामूली। चौकीदार पासी रोज़ आधीरात को हाँक लगाता हुआ समझा जाने लगा कि पूरी रखवाली कर रहा है। 

गङ्गावासी एक दिन दो जनेऊ दे गया। एक दिन भट्टजी आये और सीता स्वयंवर के कुछ कवित्त भूषण की अमृत ध्वनि सुना गये।

 गर्ज़ यह कि इस समय कोई नहीं चूका।

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